*कैसे कौए हुए काले*

*कैसे कौए हुए काले*

एक बार की बात है । एक ऋषि ने एक कौवे को अमृत की तलाश में भेजा लेकिन कौवे को ये चेतावनी भी दी कि केवल अमृत के बारे में पता करना है उसे पीना नहीं है अन्यथा तुम इसका कुफल भोगोगे । कौवे ने हामी भर दी और उसके बाद सफेद कौवे ने ऋषि से विदा ली । एक साल के कठोर परिश्रम के बाद कौवे को आखिर अमृत के बारे में पता चल गया । वह इसे पीने की लालसा रोक नहीं पाया और इसे पी लिया जबकि ऋषि ने उसे कठोरता से उसे नहीं पीने के लिए पाबंद किया था । सो उसने ऐसा कर ऋषि को दिया अपना वचन तोड़ दिया । पीने के बाद उसे पछतावा हुआ और उसने वापिस आकर ऋषि को पूरी बात बताई तो ऋषि ये सुनते ही आवेश में आ गये और कौवे को शाप दे दिया और कहा क्योंकि तुमने अपनी अपवित्र चोंच से अमृत की पवित्रता को नष्ट किया है इसलिए आज के बाद पूरी मानवजाति तुमसे घृणा करेगी और सारे पंछियों में केवल तुम होंगे जो सबसे नफरत भरी नजरो से देखे जायेंगे । किसी अशुभ पक्षी की तरह पूरी मानवजाति हमेशा तुम्हारी निंदा करेगी । और चूँकि अमृत का पान किया है इसलिए तुम्हारी स्वाभाविक मृत्यु नहीं होगी । कोई बीमारी भी नहीं होगी और तुम्हे वृद्धावस्था भी नहीं आएगी । भाद्रपद के महीने के सोलह दिन तुम्हे पितरो का प्रतीक मानकर आदर दिया जायेगा । तुम्हारी मृत्यु आकस्मिक रूप से ही होगी इतना कहकर ऋषि ने अपने कमंडल के काले पानी में उसे डुबो दिया । काले रंग का बनकर कौवा उड़ गया तभी से कौवा काले रंग के हो गये । हालाँकि ये कहानियां लोककथाओं के रूप में प्रचलित है लेकिन फिर भी मेने अक्सर कई लेखो और मान्यताओं में किसी एक के किये कर्मो की सजा उसकी पूरी जाति को भुगतनी पड़ी हो ऐसा देखा है लेकिन मेरे विचार ये केवल काल्पनिक लेख ही होंगे क्योंकि आधुनिक युग की परिभाषा में जन्हा लोग तर्क करने की क्षमता रखते है किसी भी धारणा का अँधा अनुकरण करने से पहले ये सब पहले के जमाने में लोगो को कुछ शिक्षाओं को उनके मानसिक स्तर पर समझाने का ये प्रयास ही रहा होगा । ऐसा हम मान सकते है .

*शतरंज के खिलाडी*

एक युवक ने किसी मठ के महंत से कहा मैं साधू बनना चाहता हूँ लेकिन एक समस्या ये है कि मुझे कुछ भी नहीं आता केवल एक चीज़ के और वो है शतरंज लेकिन शतरंज से मुक्ति तो नहीं मिलती और एक दूसरी बात जो मैं जानता हूँ वो ये है कि सभी प्रकार के आमोद प्रमोद के साधन जो है वो पाप है । इन दोनों बातों के अलावा मुझे कोई अधिक ज्ञान नहीं ।

इस पर महंत ने उस युवक से कहा ” हाँ वे पाप तो है लेकिन उन से मन भी बहलता है और क्या पता उस मठ को उनसे भी कोई लाभ पहुंचे ।  महंत ने शतरंज की एक बिसात बिछाई और युवक को शतरंज की एक बाजी खेलने को कहा । सब खेल शुरू होने वाला था महंत ने उस युवक को कहा कि देखो ” हम शतरंज की एक बाजी खेलेंगे और अगर मैं हार गया तो मैं इस मठ को हमेशा के लिए छोड़ दूंगा और तुम मेरा स्थान ले लोगे ।”  युवक ने देखा महंत वास्तव में गंभीर था तो युवक के लिए अब ये बाजी जिन्दगी और मौत का सवाल बन गयी थी क्योंकि वो मठ में रहना चाहता था इसलिए उसे ये था कि मैं हार न जाऊ ।

युवक के माथे से दबाव साफ़ जाहिर हो रहा था और उसके माथे से पसीना भी चू रहा था । वंहा मौजूद सही लोगो के लिए अब ये शतरंज का बोर्ड पृथ्वी की धुरी की तरह हो गया था ।  महंत ने खराब शुरुआत की । युवक ने कई कठोर चले चली लेकिन उसने क्षण भर के लिए महंत के चेहरे को देखा  । फिर जानबूझकर खराब खेलने लगा । अचानक ही महंत ने बिसात ठोकर मरकर जमीन पर गिरा दी ।  महंत ने कहा ” तुम्हे जितना सिखाया गया था तुम उस से कंही ज्यादा जानते हो । तुमने अपना पूरा ध्यान जीतने पर लगाया और अपने सपनों के लिए लड़ सकते हो । फिर तुम्हारे भीतर करूंणा जाग उठी और तुमने भले कार्य के लिए त्याग करने का निश्चय कर लिया ।”

महंत के जारी रखते हुए कहा ” तुम्हारा इस मठ में स्वागत है क्योंकि तुम जानते हो कि कैसे अनुशाशन और करुणा में सामजस्य स्थापित किया जा सकता है इसलिए तुम कर सकते हो ।”

*विद्या का सदुपयोग*

एक व्यक्ति पशु पक्षियों का व्यापार किया करता था | एक दिन उसे पता लगा कि उसके गुरु को पशु पक्षियों की बोली की समझ है | उसके मन में ये ख्याल आया कि कितना अच्छा हो अगर ये विद्या उसे भी मिल जाये तो उसके लिए भी यह फायदेमंद हो |  वह पहुँच गया अपने गुरु के पास और उनकी खूब सेवा पानी की और उनसे ये विद्या सिखाने के लिए आग्रह किया | गुरु ने उसे वो विद्या सिखा तो दी लेकिन साथ ही उसे चेतावनी भी दी कि अपने लोभ के लिए वो इसका इस्तेमाल नहीं करें अन्यथा उसे इस कुफल भोगना पड़ेगा | व्यक्ति ने हामी भर दी | वो घर आया तो उसने अपने कबूतरों के जोड़े को यह कहते हुए सुना कि मालिक का घोडा दो दिन बाद मरने वाला है इस पर उसने अगले ही दिन घोड़े को अच्छे दाम पर बेच दिया | अब उसे भरोसा होने लगा कि पशु पक्षी एक दूसरे को अच्छे से जानते है | अगले दिन उसने अपने कुत्ते को यह कहते हुए सुना कि मालिक की मुर्गिया जल्दी ही मर जाएँगी तो उसने बाजार जाकर सारी मुर्गियों को अच्छे दामों पर बेच दिया | और कई दिनों बाद उसने सुना कि शहर की अधिकतर मुर्गियां किसी महामारी की वजह से मर चुकी है वो बड़ा खुश हुआ कि चलो मेरा नुकसान नहीं हुआ | हद तो तब हो गयी जब उसने एक दिन अपनी बिल्ली को यह कहते हुए सुना कि हमारा मालिक अब तो कुछ ही दिनों का मेहमान है तो उसे पहले तो विश्वास ही नहीं हुआ लेकिन बाद में अपने गधे को भी उसने वही बात दोहराते हुए सुना तो वो घबरा कर अपने गुरु के पास गया और उनसे बोला कि मेरे अंतिम क्षणों में करने योग्य कोई काम है तो बता दें क्योंकि मेरी मृत्यु निकट है | इस पर गुरु ने उसे डांटा और कहा कि मूर्ख मेने पहले ही तुझसे कहा था कि अपने हित के लिए इस विद्या का उपयोग मत करना क्योंकि सिद्धियाँ न किसी की हुई है और न किसी की होंगी | इसलिए मेने तुझसे कहा था कि अपने लाभ के लिए और किसी के नुकसान के लिए इनका प्रयोग मत करो |

Previous
Next Post »